उनसे हाल ही में मुलाकात हुई, इस दौरान शोभा की सबसे सटीक बात यही रही कि अगर बच्चों और औरतें को मजबूत बनाना है तो उन्हें अपने फैसले खुद लेने दें, सही भी और गलत भी...
Talking to Shobha De.
अपने ब्लॉग पोस्ट की शुरुआत शोभा डे से करना चाहती हूं। उनसे हाल ही में मुलाकात हुई। उन्हें जानते तो होंगे आप? जानी-मानी सोशलाइट और लेखिका हैं। उनमें कई चीजें हैं मगर मुझे एक ही प्रेरित करती है। वो है उनकी छवि। महिला सुरक्षा को लेकर तेज होते स्वरों और बहुत सारी बहसों के बीच उनके देख लगता है कि एक स्वतंत्र नारी कैसी होती है या हो सकती है? शोभा ने जो भी लिखा और जिया, उसमें मुझे ज्यादा अंतर नहीं दिखता। दूरदर्शन पर 1995 में प्रसारित होने वाले मशहूर सीरियल स्वाभिमान को उन्होंने ही लिखा था। तब आदर्श नारियों वाले कार्यक्रमों की भरमार थी लेकिन उन्होंने नारी की बोल्ड छवि को सामने रखा। कोई 20 साल पहले ही उन्होंने इसमें औरत-आदमी के शादी के बाद संबंधों की कहानी कही। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तब भी हकीकत थे, आज भी हैं, पर हम बात करने से बचना चाहते हैं। तब तो समाज में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को बड़े नैतिक गुनाह के तौर पर देखा जाता था। कस्बों, शहरों या महानगरों में हालत आज भी कोई ज्यादा अलग नहीं है, पर ऐसी है कि मैं शरीर तईं औरत की पवित्रता की बातें करके, उसे मंदिर की मूरत बनाने की कोशिशों के खिलाफ खुलकर लिख सकती हूं... और लिखे का समर्थन कर सकती हूं।
Shobha De |
दो दिन पहले ही अपनी बेटी अनंदिता के साथ शोभा जयपुर में थीं। एक सेशन में बोलने के लिए उन्हें बुलाया गया था। सेशन का शीर्षक था, बैंड बाजा एंड कनफ्यूजन। सेशन से पहले उनसे कुछ बातें हुईं। प्रस्तुत हैं कुछ अंश:
Q. इस शहर में क्या बदलाव पाती हैं?
मैं आपको बताती हूं। कुछ देर पहले मैं अपनी बेटी के साथ लंच कर रही थी। हमारे पास में दो परिवार बैठे थे। खाते हुए हम उन परिवारों को भी ऑब्जर्व कर रही थीं। वे अपने में ही मग्न थे। तब मैंने अनंदिता से कहा कि देखो जयपुर कितना बदल गया है। इसकी साक्षी मैं हूं। यहां लगातार आती रहती हूं। यहां के लोगों को करीब से जानती हूं। पहले लोग इतना कॉन्शियस होते थे कि उठते-बैठते हर छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखते थे। अब ऐसा नहीं है। लोगों ने यहां खुद को फ्री छोड़ दिया है।
Q. जैसे कि आप सत्र में कनफ्यूजन पर बोलने वाली हैं, कनफ्यूज कौन है? आप भी रही हैं?
हमारी कंट्री में औरतें सबसे ज्यादा कनफ्यूज हैं। क्योंकि उनकी परवरिश रोका-टोकी में ज्यादा होती है। ये मत कर, वैसा मत कर, ये गलत है, वो सही है... तो ऐसी स्थिति में वो कभी अपना निर्णय ले ही नहीं पाती। उसे पता ही नहीं चल पाता कि वो जो कर रही है सही है कि गलत। रही बात मेरी तो काफी हद तक मुझे हमेशा एक स्वतंत्र माहौल मिला है। होती हूं कभी-कभी कनफ्यूज, लेकिन जल्दी ही उस कनफ्यूजन से बाहर निकल आती हूं।
Q. तो इंसानों की दुविधा कैसे दूर होगी?
कुछ करने की जरूरत नहीं है। बस पेरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चों को केवल एजुकेट करें। उन पर बंदिशें न लगाएं। ये बोलकर न रोको कि यो यो हनी सिंह के गाने मत सुनो या फिर सनी लियोनी को मत देखो। उन्हें फ्री छोड़ दो और उनको खुद रिजेक्ट करने दो कि उनके लिए क्या गलत है और क्या सही है। आज तकनीक इतनी आगे बढ़ चुकी है कि जितनी बंदिशें लगाई जाएंगी, बच्चे उतना ही सुसाइड करेंगे।
Q. तो क्या सेंसर करने का कोई महत्व नहीं?
मैं किसी सेंसर को नहीं मानती।
Q. विमन एम्पावरमेंट को परिभाषित कीजिए?
वाइन पीने, पब में जाने और छोटे कपड़े पहनने से विमन एम्पावरमेंट नहीं होगा। महिलाओं को चाहिए कि वे स्ट्रॉन्ग बनें। मजबूत ही फैसले लें। निर्णय लेने वाली की भूमिका में आएं। औरत को अपनी सफलता के पीछे बहुत कुछ खोना पड़ता है। हमारे समाज में औरत की सफलता का जश्न नहीं मनाया जाता, चाहे समाज कितना भी शिक्षित हो जाए। बेटे की सफलता पर आरती उतारी जाती है, मैं चाहती हूं कि बेटी की सफलता पर आरती उतारी जाए। पेरेंट्स को ऐसा इसके लिए बेटी के प्रति भावुक होना पड़ेगा। इंद्रा नूई जो पेप्सीको की प्रेसिडेंट हैं, कहती हैं कि मेरी बेटी कभी नहीं समझ पाएगी कि मैं एक अच्छी मां हूं। तो एक औरत को सफलता के पीछे कितना खोना पड़ता है, ये कोई समझ नहीं सकता।
Q. आपने समय से पहले स्वाभिमान में बोल्ड कहानी लिखी, क्या अब 20 साल बाद भी इस समय से पहले की स्क्रिप्ट लिखने का इरादा है?
सास-बहू का भी समय अब खत्म है। मैंने तब भी कोशिश की कि (स्वाभिमान की) स्क्रिप्ट में सच्चाई हो और लोग भी सच्चाई ही देखना चाहते हैं। अब कोई स्क्रिप्ट नहीं लिख रही। लेकिन हां, जब भी लिखूंगी तो वो सच्चाई पर होगी।
Q. आपके लिखे धारावाहिकों (शांति, स्वाभिमान) और किताबों (मसलन - स्पीडपोस्ट, सेकेंड थॉट्स, स्टारी नाइट्स, सोशलाइट ईवनिंग्स) के नाम एस अक्षर से शुरू हुए। क्यों?
मुझे एस अक्षर का साउंड भाता है। मेरा नाम भी तो इसी से शुरू होता है। यूं मानिए, इस शब्द पर मेरी पूरी जिंदगी टिकी है।
-:- Thanks -:-
Good Going Kiran...:)
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और पूरी तैयारी के साथ किया गया साक्षात्कार। जितने बेबाक सवाल हैं उतने ही सटीक जवाब हैं। साहित्य से जुड़ाव ने आपके सवालों को ओर धार दी है। द किरन क्वेश्चन जारी रहना चाहिए, बहुत अच्छा प्रयास है।
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